अथ पञ्चमस्तोत्रम्
वासुदेवापरिमेयसुधामन् शुद्धसदोदित सुन्दरीकान्त ।
धराधरधारण वेधुरधर्तः सौधृतिदीधितिवेधृविधातः ॥ 1॥
अधिकबन्धं रन्धय बोधा च्छिन्धिपिधानं बन्धुरमद्धा ।
केशव केशव शासक वन्दे पाशधरार्चित शूरपरेश (शूरवरेश) ॥ 2॥
नारायणामलतारण (कारण) वन्दे कारणकारण पूर्ण वरेण्य ।
माधव माधव साधक वन्दे बाधक बोधक शुद्ध समाधे ॥ 3॥
गोविन्द गोविन्द पुरन्दर वन्दे स्कन्द सनन्दन वन्दित पाद ।
विष्णु सृजिष्णु ग्रसिष्णु विवन्दे कृष्ण सदुष्ण वधिष्ण सुधृष्णो ॥ 4॥
विष्णो सृजिष्णो ग्रसिष्णो विवन्दे कृष्ण सदुष्णवधिष्णो सुधृष्णो
मधुसूदन दानवसादन वन्दे दैवतमोदन (दैवतमोदित) वेदित पाद ।
त्रिविक्रम निष्क्रम विक्रम वन्दे सुक्रम सङ्क्रमहुङ्कृतवक्त्र ॥ 5॥ (सङ्क्रम सुक्रम हुङ्कृतवक्त्र)
वामन वामन भामन वन्दे सामन सीमन सामन सानो ।
श्रीधर श्रीधर शन्धर वन्दे भूधर वार्धर कन्धरधारिन् ॥ 6॥
हृषीकेश सुकेश परेश विवन्दे शरणेश कलेश बलेश सुखेश ।
पद्मनाभ शुभोद्भव वन्दे सम्भृतलोकभराभर भूरे ।
दामोदर दूरतरान्तर वन्दे दारितपारक पार (दारितपारगपार) परस्मात् ॥ 7॥
आनन्दसुतीर्थ मुनीन्द्रकृता हरिगीतिरियं परमादरतः ।
परलोकविलोकन सूर्यनिभा हरिभक्ति विवर्धन शौण्डतमा ॥ 8॥
इति श्रीमदानन्दतीर्थभगवत्पादाचार्य विरचितं
द्वादशस्तोत्रेषु पञ्चमस्तोत्रं सम्पूर्णम्