अथ षष्ठस्तोत्रम्

मत्स्यकरूप लयोदविहारिन् वेदविनेत्र चतुर्मुखवन्द्य ।
कूर्मस्वरूपक मन्दरधारिन् लोकविधारक देववरेण्य ॥ 1॥

सूकररूपक दानवशत्रो भूमिविधारक यज्ञावराङ्ग ।
देव नृसिंह हिरण्यकशत्रो सर्व भयान्तक दैवतबन्धो ॥ 2॥

वामन वामन माणववेष दैत्यवरान्तक कारणरूप ।
राम भृगूद्वह सूर्जितदीप्ते क्षत्रकुलान्तक शम्भुवरेण्य ॥ 3॥

राघव राघव राक्षस शत्रो मारुतिवल्लभ जानकिकान्त ।
देवकिनन्दन नन्दकुमार वृन्दावनाञ्चन गोकुलचन्द्र ॥ 4॥

कन्दफलाशन सुन्दररूप नन्दितगोकुलवन्दितपाद ।
इन्द्रसुतावक नन्दकहस्त चन्दनचर्चित सुन्दरिनाथ ॥ 5॥

इन्दीवरोदर दलनयन मन्दरधारिन् गोविन्द वन्दे ।
चन्द्रशतानन कुन्दसुहास नन्दितदैवतानन्दसुपूर्ण ॥ 6॥

देवकिनन्दन सुन्दररूप रुक्मिणिवल्लभ पाण्डवबन्धो ।
दैत्यविमोहक नित्यसुखादे देवविबोधक बुद्धस्वरूप ॥ 7॥

दुष्टकुलान्तक कल्किस्वरूप धर्मविवर्धन मूलयुगादे ।
नारायणामलकारणमूर्ते पूर्णगुणार्णव नित्यसुबोध ॥ 8॥

आनन्दतीर्थकृता हरिगाथा पापहरा शुभनित्यसुखार्था ॥ 9॥

इति श्रीमदानन्दतीर्थभगवत्पादाचार्य विरचितं
द्वादशस्तोत्रेषु षष्ठस्तोत्रं सम्पूर्णम्