नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमः शान्तशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 1 ॥

सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 2 ॥

श्मशाने शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 3 ॥

फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 4 ॥

शिरः शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं
वियद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा फालचन्द्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 5 ॥

करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं परेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं [धनेशस्यमित्रं]
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 6 ॥

उदासं सुदासं सुकैलासवासं
धरानिर्झरे संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजं हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 7 ॥

मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजैः सम्पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं तं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 8 ॥

सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
महातीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ 9 ॥

इति श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं पार्वतीवल्लभाष्टकं नाम नीलकण्ठ स्तवः ॥