श्री षण्मुख षट्कम्
गिरितनयासुत गाङ्गपयोदित गन्धसुवासित बालतनोगुणगणभूषण कोमलभाषण क्रौञ्चविदारण कुन्दतनो ।गजमुखसोदर दुर्जयदानवसङ्घविनाशक दिव्यतनोजय जय हे गुह षण्मुख सुन्दर देहि रतिं तव पादयुगे ॥ 1 ॥ प्रतिगिरिसंस्थित भक्तहृदिस्थित पुत्रधनप्रद रम्यतनोभवभयमोचक भाग्यविधायक भूसुतवार सुपूज्यतनो ।बहुभुजशोभित…
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